तेरी यादों से मैं और क्या सिला पाउँगा,
तनहा रह के भी .. मैं अब ना तनहा रह पाउँगा!
मय्कदो, महफ़िलो की रौशनी कहाँ मेरे लिए,
मैं इनमें .. तेरे गेसूओ का अन्धेरा कहाँ पाउँगा!
करवटो, सिलवटो में बस चुकी है तेरी यादें,
होगी सुबह ..... तो मैं थोड़ा और सो जाउँगा!
याद करता हूँ, उन वीरानो में हमारी मुलाकातें,
कल उस दरख़्त से .. मैं तेरी निशानी मांग लाउँगा!!
याद करता हूँ तेरी बातें और जी लेता हूँ,
जाने कब तक मैं इस तरह ज़िन्दगी को टाल पाउँगा!
ना "जीवन" की सुनी.. ना "ज़िन्दगी" की मानी..इसने
जाने इस दिल को ... अब मैं कैसे संभाल पाउँगा!
बस कुछ देर की हैं मेरी ये चंद साँसे,
बस एक आखिरी बार रुला के... फिर मैं चला जाउंगा!