Monday, October 4, 2010

लगता कुछ कम सा हैं.....




हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...
दिल में हो के भी तू मेरे पास... मेरे पास... क्यों नहीं हैं..

एक ये आँखें है, जो हमेशा ही तुझे ढूँढ़ती है.......
एक ये दिल है जो तेरी याद में , उन्हे धुंधला कर देता है..
हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...

घर से काम और काम से बस घर...इस में मैं बस गया हूँ..
तेरी याद ना आ पाए मुझे इसीलिए, इन ही में मैं उलझ गया हूँ!!
हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...

कभी हम थे फ़िदा उन पे, कभी वो थे खफा हम पे..
पर दोनों ही सूरतो में, मैं मुन्तजिर ही रहा हूँ!!
हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...

यार के हिजाब की सब तारीफ़ करे, ऐसे मेरा ख्वाब हैं
पर अपनी ख्वाहिशो से ज्यादा उनकी खुशियों की बलाएं माँगता हूँ
हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...

हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...
है कुछ भी नहीं मेरे पास, पर रब से उनकी खुशिया मांगता हूँ!!
हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...

2 comments:

  1. धुंधला Translucent vision
    फ़िदा Crazy
    खफा Angry
    मुन्तजिर One who is in wait
    हिजाब A cloth used to cover the face by women
    or नकाब
    ख्वाहिशो wishes
    बलाएं Request in prayer
    रब God

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  2. अंतद्वंद को बखूबी लिखा है ..

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